क्या ‘गुलाम’ बन जाएगा ब्रिटेन, बदल रही डेमोग्राफी…इस्लाम वाला कैसा खतरा?
जिसने सैकड़ों साल तक दुनिया के अलग-अलग देशों पर हुकूमत की, जिस ब्रिटिश राज में सूरज कभी अस्त नहीं होता था, वो ब्रिटेन आज एक अनजाने खौफ के साये में जी रहा है. वहां के मूल निवासियों को खुद के गुलाम होने का डर सता रहा है.
अरब वर्ल्ड में जहां इस्लामिक आर्मी के कॉन्सेप्ट को लॉन्च किया जा रहा है तो वहीं ब्रिटेन में भी कुछ इसी तरह की चिंगारी सुलग रही है. जहां सड़कों पर जनसैलाब उमड़ पड़ा. आजादी के नारे लगने लगे. वो ब्रिटेन जिसने सैकड़ों साल तक दुनिया के अलग अलग देशों पर हुकूमत की, जिस ब्रिटिश राज में सूरज कभी अस्त नहीं होता था, वो ब्रिटेन आज एक अनजाने खौफ के साये में जी रहा है. वहां के मूल निवासियों को खुद के गुलाम होने का डर सता रहा है. उन्हें अपनी आजादी खतरे में दिख रही है. ये फिक्र उन्हें क्यों हो रही है आइए जानते हैं?
दरअसल, ब्रिटेन के नागरिक अब कह रहे हैं कि देश में बढ़ रहे अप्रवासी उनकी आजादी छीन रहे हैं. इसी के खिलाफ लाखों लोग एक साथ लंदन की सड़कों पर उतर आए. अप्रवासियों की बढ़ती संख्या के खिलाफ लंदन की सड़कों पर ‘यूनाइट द किंगडम’ नाम से रैली निकाली गई. प्रदर्शनकारी वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर मार्च करते हुए पहुंचे. हर तरफ ब्रिटेन के झंडे लहराते दिखे. आयोजकों का दावा तो यहां तक है कि विरोध प्रदर्शन में दस लाख लोग शामिल हुए. ये प्रदर्शन सबसे पहले उन होटलों के बाहर शुरू हुए, जहां शरणार्थियों को जगह दी जाती है.
इस दौरान ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर सरकार के खिलाफ नारेबाजी हुई. प्रदर्शनकारियों ने कहा. हमें अपना वतन वापस चाहिए. अप्रवासियों को हर हाल में वापस भेजो. इंग्लिश चैनल पार कर ब्रिटेन में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को रोकने की मांग की गई. कहा गया कि ब्रिटेन के मूल नागरिक अब अप्रवासियों का बोझ और नहीं झेलेंगे. वो लड़ेंगे और अपनी असली पहचान बचाएंगे.
अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे ब्रिटिश नागरिक?
गुस्से की इस लहर के पीछे ब्रिटेन में ब्रिटेन के ही मूल नागरिकों की घटती संख्या है. एक रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल वहां 73 प्रतिशत आबादी मूल ब्रिटिश नागरिकों की है, जो 2050 तक घटकर 57 प्रतिशत तक रह जाएगी. इस हिसाब से 2063 तक अपने ही देश में ब्रिटेन के मूल निवासी अल्पसंख्यक हो जाएंगे क्योंकि तब उनकी आबादी 50% से कम हो जाएगी. 2075 तक वो कुल आबादी का 44% रह जाएंगे और इस सदी के अंत तक ब्रिटेन में वहां के मूल नागरिकों की आबादी सिर्फ 33% रह जाएगी. गुलामी वाले इस डर की वजह भी यही है.
ब्रिटेन में पिछले कुछ वर्षों से अप्रवासियों की बाढ़ सी आ गई है. 2022 में वहां रिकॉर्ड 7 लाख 64 हजार अप्रवासी पहुंचे तो 2023 में ऐसे लोगों की संख्या 6 लाख 85 हजार थी. पिछले साल 4 लाख 30 हजार अप्रवासी ब्रिटेन पहुंचे जबकि इस साल जून तक एक लाख से ज्यादा लोग ब्रिटेन में शरण के लिए आवेदन कर चुके हैं. लोगों को लग रहा है अप्रवासी उनके आर्थिक अवसर और सांस्कृतिक पहचान दोनों छीन रहे हैं. ब्रिटेन में फिलहाल 40 लाख मुस्लिम अप्रवासी हैं जो कुल आबादी का 6.5 प्रतिशत हैं. वहीं हिंदू अप्रवासियों की संख्या 12 लाख है. ईसाई, सिख और अन्य अप्रवासी 57 लाख हैं.
मुस्लिमों से क्यों खौफ…इस्लाम वाला कैसा खतरा?
गौर करने वाली बात ये है कि ब्रिटेन में सबसे ज्यादा तेजी से मुस्लिम आबादी बढ़ी है. पिछले 25 वर्षों में इनकी आबादी दोगुनी हो गई है. वर्ष 2001 में ब्रिटेन में सिर्फ 16 लाख मुस्लिम थे जो कुल आबादी का 3% हिस्सा है. अब 40 लाख मुस्लिम आबादी है जो कुल आबादी का 6.5% है. इस हिसाब वर्ष 2050 तक वहां एक करोड़ 40 लाख मुस्लिम आबादी होगी जो कुल आबादी का 17.2% होगा. 2011 की जनसंख्या के मुताबिक मुस्लिम आबादी 27 लाख थी जो 2021 की जनगणना में बढ़कर 39 लाख को पार कर गई यानी 10 साल में मुस्लिमों की संख्या में 12 लाख से ज्यादा बढ़ोतरी हुई. The Times, UK के मुताबिक ब्रिटेन में 85 शरिया अदालतें काम कर रही हैं. ये पश्चिमी देशों में सबसे ज्यादा है.
बदल रही ब्रिटेन की डेमोग्राफी, लोगों की फिक्र बढ़ी
2024 में मुस्लिम विरोधी नफरत के 6 हजार 300 से अधिक मामले रिकॉर्ड किए गए जो 2023 की तुलना में 43 प्रतिशत ज्यादा है. एक अनुमान के मुताबिक लंदन और बर्मिंघम जैसे बड़े शहरों में मुस्लिम आबादी 15 से 20 प्रतिशत के बीच पहुंच चुकी है. अब इसी का हवाला देकर दक्षिणपंथी एक्टिविस्ट टॉमी रॉबिन्सन ने लंदन में इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया.
वैसे अप्रवासियों की बढ़ती संख्या का सियासी कनेक्शन भी है. फिलहाल वहां लेबर पार्टी की सरकार है, जिसे अप्रवासियों का समर्थक माना जाता है इसलिए प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर कहा कि हिंसा, डर और बंटवारे का जो इस्तेमाल कर रहे हैं हम उनके आगे सरेंडर नहीं करेंगे. हालांकि, टॉमी रॉबिन्सन और लंदन में हुए इस प्रदर्शन को अमेरिकी कारोबारी इलॉन मस्क ने भी समर्थन किया. मस्क ने कहा अब यूरोप के पास कोई विकल्प नहीं बचा है. उनके लिए लड़ो या मरो वाली स्थिति है.
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