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दुर्गा पूजा में क्या है चक्षुदान का रहस्य…आखिरी में क्यों बनायी जाती हैं देवी की आंखें?

दुर्गा पूजा सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि कला, श्रद्धा और आध्यात्मिकता का अनोखा संगम है. बंगाल में आज भी जिस तरह से पंडाल में मां दुर्गा की प्रतिमा बनाई जाती है, उसमें आख़िरी में आंखें बनाना एक पवित्र और रहस्यमय परंपरा है. विशेषज्ञ बताते हैं कि यह प्रक्रिया केवल कलात्मकता तक सीमित नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरे धार्मिक और आध्यात्मिक संकेत छिपे हैं.


दुर्गा पूजा 2025: दुर्गा पूजा सिर्फ बंगाल ही नहीं, बल्कि पूरे भारत और विश्व में शौर्य, भक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक मानी जाती है. इस पर्व में सबसे आकर्षक हिस्सा है मां दुर्गा की प्रतिमा लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि आंखें हमेशा सबसे आख़िरी में बनाई जाती हैं? धार्मिक विद्वानों के अनुसार, यह केवल कला का हिस्सा नहीं बल्कि आत्मा के प्रवेश की प्रक्रिया है. प्रतिमा में आंखें बनते ही देवी की शक्ति और आशीर्वाद का प्रतीक स्थापित होता है.

क्या होता है चक्षुदान?

बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान प्रतिमा की आख़िरी में आंखें बनाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है. इसे चक्षुदान कहा जाता है. इस प्रक्रिया में आंखें केवल वरिष्ठ या अनुभवी कलाकार द्वारा बनाई जाती हैं और इसे हमेशा गुप्त रखा जाता है, ताकि भक्तों के सामने प्रतिमा का रहस्य और ऊर्जा का प्रभाव बना रहे. महालया के दिन यह कार्य किया जाता है, और आंखें बनते ही प्रतिमा में जीवंतता और दिव्यता का संचार होता है. बंगाल के कुम्हारतुली और अन्य पारंपरिक पंडाल आज भी इस ट्रेडिशन का सम्मान और श्रद्धा के साथ पालन करते हैं.

कला और शिल्प विज्ञान का महत्व

प्रतिमा के चेहरे और आंखें आख़िरी में बनाने का कारण केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि कला और शिल्प विज्ञान से भी जुड़ा है. आंखें भाव, दृष्टि और ऊर्जा का केंद्र होती हैं. आख़िरी में तैयार आंखें ही प्रतिमा में जीवंतता और भव्यता लाती हैं. अगर आंखें पहले बनाई जातीं, तो भाव और श्रद्धा का प्रभाव अधूरा रह जाता.

पुराणों और शास्त्रों में चक्षु विकास

धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में इसे नेत्र प्रतिष्ठा या चक्षु विकास कहा गया है. शास्त्रों के अनुसार, जब आंखें अंकित होती हैं, तभी देवी की सर्वशक्तिमान उपस्थिति महसूस की जा सकती है. यही कारण है कि आख़िरी चरण में आंखों का अंकन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है.

भक्ति और ऊर्जा का केंद्र

स्थानीय कलाकारों और पंडाल आयोजकों के अनुसार आख़िरी में आंखें बनाना भक्तों के लिए आकर्षण और ध्यान का केंद्र बनता है. आंखें प्रतिमा में जीवन का अहसास कराती हैं और श्रद्धालु उनसे सीधे जुड़ाव महसूस करते हैं. इस प्रक्रिया को नेत्रमिलन भी कहा जाता है. आंखें आख़िरी में बनाने की प्रथा केवल कला नहीं, बल्कि देवी की शक्ति और भक्ति का प्रतीक है. यह दर्शाती है कि भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा तभी पूर्ण होती है जब दृष्टि यानी आंखों के माध्यम से भक्तों तक पहुँचती है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. XP News18 इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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