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बेहतर इलाज की तलाश, ज्यादा खर्च करने को तैयार 90 प्रतिशत लोग, रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा

भारत में बेहतर इलाज के लिए 90 प्रतिशत लोग ज्यादा पैसा खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं. भारत में औसतन हर अस्पताल में सिर्फ 2530 बेड हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर संख्या 100 से कहीं पीछे है.


भारत में बेहतर इलाज के लिए लोग ज्यादा पैसा खर्च करने में पीछे नहीं है. यह खुलासा हाल ही में सामने आई FICCI और EY-Parthenon की एक रिपोर्ट में हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 83% मरीज चाहते हैं कि उन्हें इलाज से जुड़ी सटीक और आसानी से उपलब्ध जानकारी मिले ताकि वे बेहतर स्वास्थ्य निर्णय ले सकें. वहीं, लगभग 90% मरीज ऐसे हैं जो प्रमाणित गुणवत्तापूर्ण इलाज के लिए थोड़ा अधिक भुगतान करने को तैयार हैं.

इस रिपोर्ट में भारत के लिए एक ऐसा व्यावहारिक रोडमैप बताया गया है, जिससे स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर और सस्ती दोनों बनाई जा सकें. रिपोर्ट के अनुसार, भारत की स्वास्थ्य सेवा कई देशों की तुलना में अधिक कुशल है, लेकिन अब भी इसमें संरचनात्मक और आर्थिक चुनौतियां हैं. इसी वजह से जरूरत है कि राष्ट्रीय स्तर पर एक फ्रेमवर्क बनाया जाए, जिसमें न्यूनतम गुणवत्ता मानक तय हों, ताकि मरीज सही और सुरक्षित चिकित्सा विकल्प चुन सकें.

रिपोर्ट में शामिल आंकड़े

यह अध्ययन देश के 40 शहरों के 250 अस्पतालों में किया गया, जिनमें करीब 75,000 बेड शामिल थे. इसके अलावा, इसमें 1,000 से अधिक मरीजों के सर्वे, 100 से ज्यादा डॉक्टरों, CXOs और निवेशकों के साथ चर्चा भी शामिल थी. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति अस्पताल बेड की क्षमता 2000 के बाद दोगुनी हो गई है. फिर भी भारत में अस्पतालों में बेड की संख्या दुनिया में सबसे कम है. भारत में औसतन हर अस्पताल में सिर्फ 2530 बेड हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संख्या 100 से अधिक होती है.

भुगतान करने में बीमा कंपनियां पीछे

सर्वे से पता चला कि 83% मरीज चाहते हैं कि उन्हें अस्पतालों और डॉक्टरों से जुड़ी विश्वसनीय जानकारी मिले, जैसे कि — अस्पताल की रेटिंग, इलाज के नतीजे आदि. वे एक भरोसेमंद इलाज चाहते हैं, जिससे उन्हें सही अस्पताल चुनने में मदद मिले. इनमें से लगभग 90% मरीज कहते हैं कि वे प्रमाणित गुणवत्ता के लिए अधिक शुल्क देने को भी तैयार हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में टॉप 5 पेयर्स (बीमा कंपनियां या भुगतान करने वाले संस्थान) कुल स्वास्थ्य भुगतान का सिर्फ 40% हिस्सा देते हैं, जबकि विकसित देशों में यह हिस्सा 80% तक होता है.

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