अल-शरा का राष्ट्रपति बनना तय, फिर क्या दिखावे के लिए सीरिया में कराए गए चुनाव?
सीरिया में बशर अल-असद के सत्ता से बेदखल होने के बाद पहली बार चुनाव हुए, जिसमें अहमद अल-शरा की जीत तय मानी जा रही है. ये चुनाव प्रत्यक्ष नहीं थे, आम नागरिकों ने वोट नहीं डाले. 1,570 उम्मीदवारों ने 140 सीटों के लिए चुनाव लड़ा, बाकी 70 सदस्य अल-शरा नियुक्त करेंगे. चुनाव की पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं.
सीरिया में बशर अल-असद के सत्ता से बेदखल होने के बाद पहली बार संसदीय चुनाव हुए. फाइनल रिजल्ट 7 अक्टूबर को आएगा. इस चुनाव में अहमद अल-शरा की जीत तय मानी जा रही है. पिछले साल दिसंबर में तख्तापलट के बाद अल-शरा अंतरिम राष्ट्रपति बने थे. हालांकि सीरिया में चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि ऐसा सिर्फ दिखावे के लिए किया जा रहा है.
इस चुनाव में सीरियाई नागरिकों को सीधे मतदान की अनुमति नहीं दी गई. इसके अलावा चुनाव में कोई राजनीतिक दल भी शामिल नहीं था. नई पीपुल्स असेंबली में 210 सीटें हैं, जो अल-असद के कार्यकाल से 40 सीटें कम है. सदस्यों का कार्यकाल 2.5 साल का होगा. अल-शरा 70 सदस्यों की नियुक्ति करेंगे. बाकी के 140 सीटों पर वोटिंग हुई.
चुनाव कैसे कराए गए?
इस चुनाव की जिम्मेदारी 11 सदस्यों वाली हाई लेवल कमेटी को दी गई गई थी, जिसे अल-शरा ने नियुक्त किया था. हाई लेवल कमेटी की देखरेख वाली सब कमेटी ने 140 सीटों पर वोटिंग की. इस सब कमेटी में लगभग 6,000 वोटर्स शामिल हैं. यह अप्रत्यक्ष चुनाव है, जिसमें वोटर्स केे एक समूह का इस्तेमाल किया गया. इन वोटर्स को भी अल-शरा ने ही चुना था.
सीरियाई अधिकारियों का कहना है कि ये कोई आम चुनाव नहीं था, क्योंकि उनके पास जनसंख्या के विश्वसनीय आंकड़े नहीं है. लगभग 14 साल तक चले युद्ध की वजह से लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं. करोड़ों लोगों के पास दस्तावेज नहीं है ऐसे में आम चुनाव की बजाय यह प्रक्रिया अपनाई गई.
कितने उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा?
अल-शरा द्वारा की ओर से नियुक्त की गई हाई लेवल कमेटी ने 1,570 उम्मीदवारों को मंजूरी दी थी. ये उम्मीदवार अल-शरा 140 सीटों के लिए चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव में आरक्षण का कोई तय कोटा नहीं था, लेकिन महिलाओं के लिए 20%, विशेष जरूरतों वाले लोगों के लिए 3%, और और बाकी सीटों में 70% पेशेवर लोगों को और 30% पारंपरिक प्रतिष्ठित लोगों को मौका दिया गया है.
हालांकि बहुत से सीरियाई लोग खुश हैं कि अब अल-असद परिवार सत्ता में नहीं है. वे किसी भी नए विकल्प को अपनाने के लिए तैयार हैं, लेकिन सुरक्षा हालात, झड़प और अल्पसंख्यकों पर हमलों ने लोगों को चुनाव और अल-शरा की भूमिका पर संदेह करने पर मजबूर किया है. 30 सितंबर को टारटोस शहर में एक उम्मीदवार की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
हाल ही में अरब सेंटर के एक सर्वे के अनुसार, 61% सीरियाई लोग लोकतंत्र चाहते हैं, जिसमें हर किसी को बोलने और चुनाव लड़ने का हक हो. वहीं 8% लोग इस्लामी कानून के हिसाब से शासन चाहते हैं, जिसमें कोई चुनाव न हो. वहीं 6% लोग सिर्फ इस्लामी पार्टियों को ही राजनीति में देखना चाहते हैं.
आतंकवादी से राष्ट्रपति तक का सफर
अहमद अल-शरा कभी अल-कायदा के सदस्य थे. 2003 में जब अमेरिका ने इराक पर हमला किया, तो वे अमेरिकी सेना से लड़े और अल-कायदा से जुड़ गए. बाद में उन्हें पकड़ा गया और अबू गरीब जेल में रखा गया. रिहा होने के बाद अल-शरा सीरिया लौटे और अबू मोहम्मद अल-जोलानी नाम से एक विद्रोही संगठन बनाया.उन्होंने बशर अल-असद के खिलाफ लड़ाई शुरू की. 2016 में उन्होंने अल-कायदा से नाता तोड़ लिया.
दिसंबर 2024 में उनके संगठन ने असद को सत्ता से हटा दिया. 29 जनवरी 2025 को उन्हें अंतरिम राष्ट्रपति नियुक्त किया गया. मई 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने उनसे मुलाकात की. 2016 में अमेरिका ने उन्हें आतंकी घोषित किया था, लेकिन जुलाई 2025 में आतंकियों की लिस्ट से उनका नाम हटा दिया.
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